सोमवार, 12 मार्च 2018
मंगलवार, 23 सितंबर 2014
बुधवार, 6 फ़रवरी 2013
बिलाड़ो बलिराज रो माई आईजी रो थोन
गंगा भेवे गोरवे भाई नितरा करो सिनान
हा हारे हालो बिलाड़े भाई भाई रे हालो बिलाड़े
बिलाडा में माताजी रो थोन हालो बिलाड़े
बिलाडो तो बलि रो गाँव हालो बिलाड़े
हा हारे हालो बिलाड़े भाई भाई रे हालो बिलाड़े
बिलाडा में माताजी रो थोन हालो बिलाड़े
हा हारे हालो बिलाड़े भाई भाई रे हालो बिलाड़े
बिलाड़े हालो भाई माताजी रा दर्शन करने
बिलाडा में पड़े भाई माताजी रा प्रचा भारी
हा हारे हालो बिलाड़े भाई भाई रे हालो बिलाड़े
बिलाडा में माताजी रो थोन हालो बिलाड़े
हा हारे हालो बिलाड़े भाई भाई रे हालो बिलाड़े
बिलाडा में माताजी ने घी का दीपक जलाया रे
अखण्ड ज्योत सु पल-पल में केशर निरखे
हा हारे हालो बिलाड़े भाई भाई रे हालो बिलाड़े
बिलाडा में माताजी रो थोन हालो बिलाड़े
हा हारे हालो बिलाड़े भाई भाई रे हालो बिलाड़े
बिलाडा में हालो भाई माताजी रा दर्शन करवा ने
कुंकम केशर रा तिलक लगावोला हालो बिलाड़े
हा हारे हालो बिलाड़े भाई भाई रे हालो बिलाड़े
बिलाडा में माताजी रो थोन हालो बिलाड़े
हा हारे हालो बिलाड़े भाई भाई रे हालो बिलाड़े
माजी थे तो भिरजो ईने रथ माय हालो बिलाड़े
माजी थोरे रथ तो हे नोंदियो असवार हालो बिलाड़े
हा हारे हालो बिलाड़े भाई भाई रे हालो बिलाड़े
बिलाडा में माताजी रो थोन हालो बिलाड़े
हा हारे हालो बिलाड़े भाई भाई रे हालो बिलाड़े
माजी थोरो रथ तो फिरे ओ गाँव गाँव भडेरो में
माजी थोरा रथ माई हे प्रचा भारी हालो बिलाड़े
हा हारे हालो बिलाड़े भाई भाई रे हालो बिलाड़े
बिलाडा में माताजी रो थोन हालो बिलाड़े
हा हारे हालो बिलाड़े भाई भाई रे हालो बिलाड़े
माजी छोटी रे गलिय में थोरो देवरो
थोरी ध्वजा रे फरुखे आसमान छवायो लागो देवरो
हा हारे हालो बिलाड़े भाई भाई रे हालो बिलाड़े
बिलाडा में माताजी रो थोन हालो बिलाड़े
हा हारे हालो बिलाड़े भाई भाई रे हालो बिलाड़े
माजी थोरे दुरो रे देशाउ आवे जातरू
थोने नीमण करे ओ नर नार हालो बिलाड़े
हा हारे हालो बिलाड़े भाई भाई रे हालो बिलाड़े
बिलाडा में माताजी रो थोन हालो बिलाड़े
हा हारे हालो बिलाड़े भाई भाई रे हालो बिलाड़े
लेखक
सुखाराम सोलंकी सीरवी { मारवाड़ में कुशालपुरा }
श्री सीरवी सेवा मंण्डल विल्लिवाकम चेन्नई
श्री सीरवी समाज घेर मंण्डली विल्लिवाकम चेन्नई
सोमवार, 24 दिसंबर 2012
यह एक गाँव और एक शहर की सचाई हे
एक किशान कितनी मेहनत करता हे
हम तो उससे आधी मेहनत भी नहीं करते
किशान अपने मेहनत के बल पर जीते हे
हम तो उसके भरोसे बेठे हे
किशान खेती में अन्न उन्गाते हे
हम उनका अन्न खाते हे
सूर्य की तपती गर्मी आग की तरह उगलती हुई
फिर भी किशान अपने फसल को बचाने की कोशिश करता हे
किशानो दुआरा उगाई हुई सब्जी
हमारे बाजारों में बिकती हे
किशान अपने खून का पसीना कर देते हे
एक सेठ बेठे –बेठे उसको हस रहा था
किशान बोला अरे सेठजी आप हमारे को कियो हस रहे हो
सेठ ने कहा तुम यह दुःख कियु देख रहे हो
तूम हमारे पास रहो हम आपको तनखा देंगे
किशान ने कहा तुम्हारी तनखा से हमारी खेती अच्छी हे ईस माटी पर जन्म लिया हु खेतु करूँगा
परिवार के साथ रहूँगा एकेले रहने से किया फायदा
परिवार के साथ रहूँगा तो खुसिया बाटूंगा
तेरे शहर से तो मेरा गाँव अच्छा हे
गाँव में में मेरे बाप के नाम से जाना जाता हु
शहर में मकान नम्बर पहचाना जाता हे
गाँव में फटे कपड़ो से तन को ढका जाता हे
शहर में खुले बदन पर टेटू छापा जाता हे
शहर में कोठी हे बंगले हे और हे कार
गाँव में मेरा परिवार और मेरा संस्कार हे
शहर में चीखो की अवाज दीवारे से टकराती हे
गाँव में दुसरो की अवाज भी सुनी जाती हे
शहर में शोर शराबे में कही खो जाता हु
गाँव में टूटी खुटिया पर भी आराम से सो जाता हु
शहर में रात को बाहर निकालने पर दशहत हे
मत समझो हमें कम की हम गाँव से आइये हे
तेरे शहर के बाजार तो हमारे गाँव ने ही सजाया हे
गाँव में इज्जत में सर सुर की तरह ढलते हे
चल आज हम अपने गाँव में चलते हे
……….चलो आज अपने गाँव में चलते हे……
लेखक
सुखाराम सोलंकी S/o हीराराम सोलंकी सीरवी
( मारवाड़ में कुशालपुरा ) जिला पाली
चेन्नई में कोलाथुर फोन नम्बर +91-9600054032
श्री सीरवी सेवा मंण्डल विल्लिवाकम चेन्नई
एक किशान कितनी मेहनत करता हे
हम तो उससे आधी मेहनत भी नहीं करते
किशान अपने मेहनत के बल पर जीते हे
हम तो उसके भरोसे बेठे हे
किशान खेती में अन्न उन्गाते हे
हम उनका अन्न खाते हे
सूर्य की तपती गर्मी आग की तरह उगलती हुई
फिर भी किशान अपने फसल को बचाने की कोशिश करता हे
किशानो दुआरा उगाई हुई सब्जी
हमारे बाजारों में बिकती हे
किशान अपने खून का पसीना कर देते हे
एक सेठ बेठे –बेठे उसको हस रहा था
किशान बोला अरे सेठजी आप हमारे को कियो हस रहे हो
सेठ ने कहा तुम यह दुःख कियु देख रहे हो
तूम हमारे पास रहो हम आपको तनखा देंगे
किशान ने कहा तुम्हारी तनखा से हमारी खेती अच्छी हे ईस माटी पर जन्म लिया हु खेतु करूँगा
परिवार के साथ रहूँगा एकेले रहने से किया फायदा
परिवार के साथ रहूँगा तो खुसिया बाटूंगा
तेरे शहर से तो मेरा गाँव अच्छा हे
गाँव में में मेरे बाप के नाम से जाना जाता हु
शहर में मकान नम्बर पहचाना जाता हे
गाँव में फटे कपड़ो से तन को ढका जाता हे
शहर में खुले बदन पर टेटू छापा जाता हे
शहर में कोठी हे बंगले हे और हे कार
गाँव में मेरा परिवार और मेरा संस्कार हे
शहर में चीखो की अवाज दीवारे से टकराती हे
गाँव में दुसरो की अवाज भी सुनी जाती हे
शहर में शोर शराबे में कही खो जाता हु
गाँव में टूटी खुटिया पर भी आराम से सो जाता हु
शहर में रात को बाहर निकालने पर दशहत हे
मत समझो हमें कम की हम गाँव से आइये हे
तेरे शहर के बाजार तो हमारे गाँव ने ही सजाया हे
गाँव में इज्जत में सर सुर की तरह ढलते हे
चल आज हम अपने गाँव में चलते हे
……….चलो आज अपने गाँव में चलते हे……
लेखक
सुखाराम सोलंकी S/o हीराराम सोलंकी सीरवी
( मारवाड़ में कुशालपुरा ) जिला पाली
चेन्नई में कोलाथुर फोन नम्बर +91-9600054032
श्री सीरवी सेवा मंण्डल विल्लिवाकम चेन्नई
में एक गाय हु मेरी यह एक पुकार हे
मेरा प्राण ही आपका प्राण हे
में एक गाय हु मेरा शरीर सबसे उतम हे
मेरा शरीर इस धरती पर सबसे निराला हे
मेरे बिना यह धरती अधूरी हे
मेरे बिना आप सभी प्यासे हो जाते हो
मेरा दूध का कितने लोग स्वाद लेते हे
मेरे दूध से कितने बचो का भविष्य बचता हे
मेरे दूध से दूधडी खीर बनती हे
मेरे दूधडी खीर का स्वाद कही नहीं मिलता हे
मेरे दूध से दही और माखन बनता हे
मेरे दूध से घी और छाछ बनती हे
मेरे शरीर में सभी भगवान भीराजमान होते हे
मेरे शरीर में एक स्थान आपका भी हे
मेरे गोबर से आपका आँगन पवित्र होता हे
मेरे गोमूत्र से आपका घर पवित्र होता हे
जिस देश मुझे माता कहकर पूजा करते हे
वही देश आज मेरी हत्या कर रहा हे
मुझे कत्लखाने में लिजाते हे आइना दिखाते हे
आइना दिखाकर मुझे वही खत्म कर देते हो
मेने किया गुनाह किया हे जो मुझे मार रहे हो
जब तक में धरती पर हु यह धरती रहेगी
जिस दिन में खत्म हो गयी उस दिन प्रलय आ जायेगा
एक दिन था जब मुझे बचाने के लिए
अपनी जान तलवारो से खेलकर बचाते थे
धरती माता आकास पिता यह धरती पर किया हो रहा हे
यह सब तो मुझे खत्म करने में लगे हे
यह मेरी एक पुकार हे अब मुझे बचालो
अभी नहीं बचाओंगे तो कभी नहीं
फिर प्रलय के लिए तेयार रहना
फिर चारो तरफ हाहाकार मच जायेगा
में एक गाय हु मेरी यह एक पुकार हे
LIVE IN CHENNAI KOLATHUR
लेखक सीरवी सुखाराम सोलंकी
गाँव कुशालपुरा तहसील रायपुर ( मारवाड़ )
जिला पाली
रविवार, 11 दिसंबर 2011
तुम हो फूल गुलाब के जैसी, खुश्बुदार पवन हो!
तुम मेरे जीवन की रौनक, खुशियों का उपवन हो!
पल पल मेरे साथ हो रहती, जीवन को उल्लास हो देती!
रेगिस्तानी तेज धूप में, पानी का एहसास हो देती!
तुम हो आकर्षक झरने सी, नदियों सा यौवन हो!
तुम मेरे जीवन की रौनक, खुशियों का उपवन हो....
तुम दिल की धड़कन में रहती, रक्त कणिका बनकर बहती!
तुम हो मेरी मार्ग प्रदर्शक, वाणी में सच बनकर रहती!
तुम हो सुन्दर धवला जैसी, तुम सच का दर्पण हो!
तुम मेरे जीवन की रौनक, खुशियों का उपवन हो....
तुम सपना बनकर हो रहती, पत्तों पे शबनम सी रहती!
तुम ही मेरी भूख प्यास में, थाली में भोजन सी रहती!
"देव" के जीवन की सम्रद्धि, काजल भरे नयन हो!
तुम मेरे जीवन की रौनक, खुशियों का उपवन हो....
तुम हो फूल गुलाब के जैसी, खुश्बुदार पवन हो!
तुम मेरे जीवन की रौनक, खुशियों का उपवन हो!
तुम मेरे जीवन की रौनक, खुशियों का उपवन हो!
पल पल मेरे साथ हो रहती, जीवन को उल्लास हो देती!
रेगिस्तानी तेज धूप में, पानी का एहसास हो देती!
तुम हो आकर्षक झरने सी, नदियों सा यौवन हो!
तुम मेरे जीवन की रौनक, खुशियों का उपवन हो....
तुम दिल की धड़कन में रहती, रक्त कणिका बनकर बहती!
तुम हो मेरी मार्ग प्रदर्शक, वाणी में सच बनकर रहती!
तुम हो सुन्दर धवला जैसी, तुम सच का दर्पण हो!
तुम मेरे जीवन की रौनक, खुशियों का उपवन हो....
तुम सपना बनकर हो रहती, पत्तों पे शबनम सी रहती!
तुम ही मेरी भूख प्यास में, थाली में भोजन सी रहती!
"देव" के जीवन की सम्रद्धि, काजल भरे नयन हो!
तुम मेरे जीवन की रौनक, खुशियों का उपवन हो....
तुम हो फूल गुलाब के जैसी, खुश्बुदार पवन हो!
तुम मेरे जीवन की रौनक, खुशियों का उपवन हो!
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