सोमवार, 24 दिसंबर 2012

यह एक गाँव और एक शहर की सचाई हे  
एक किशान कितनी मेहनत करता हे 
हम तो उससे आधी मेहनत भी नहीं करते 
किशान अपने मेहनत के बल पर जीते हे 
हम तो उसके भरोसे बेठे हे  
किशान खेती में अन्न उन्गाते हे 
हम उनका अन्न खाते हे 
सूर्य की तपती गर्मी आग की तरह उगलती हुई 
फिर भी किशान अपने फसल को बचाने की कोशिश करता हे  
किशानो दुआरा उगाई हुई सब्जी  
हमारे बाजारों में बिकती हे 
किशान अपने खून का पसीना कर देते हे  
एक सेठ बेठे –बेठे उसको हस रहा था 
किशान बोला अरे सेठजी आप हमारे को कियो हस रहे हो 
सेठ ने कहा तुम यह दुःख कियु देख रहे हो
तूम हमारे पास रहो हम आपको तनखा देंगे 

किशान ने कहा तुम्हारी तनखा से हमारी खेती अच्छी हे ईस माटी पर जन्म लिया हु खेतु करूँगा 
परिवार के साथ रहूँगा एकेले रहने से किया फायदा 
परिवार के साथ रहूँगा तो खुसिया बाटूंगा 
तेरे शहर से तो मेरा गाँव अच्छा हे  
गाँव में में मेरे बाप के नाम से जाना जाता हु 
शहर में मकान नम्बर पहचाना जाता हे 
गाँव में फटे कपड़ो से तन को ढका जाता हे 
शहर में खुले बदन पर टेटू छापा जाता हे 
शहर में कोठी हे बंगले हे और हे कार  
गाँव में मेरा परिवार और मेरा संस्कार हे 
शहर में चीखो की अवाज दीवारे से टकराती हे 
गाँव में दुसरो की अवाज भी सुनी जाती हे 
शहर में शोर शराबे में कही खो जाता हु 
गाँव में टूटी खुटिया पर भी आराम से सो जाता हु 
शहर में रात को बाहर निकालने पर दशहत हे 
मत समझो हमें कम की हम गाँव से आइये हे 
तेरे शहर के बाजार तो हमारे गाँव ने ही सजाया हे 
गाँव में इज्जत में सर सुर की तरह ढलते हे 
चल आज हम अपने गाँव में चलते हे 
……….चलो आज अपने गाँव में चलते हे…… 
                         लेखक 
सुखाराम सोलंकी S/o हीराराम सोलंकी सीरवी
( मारवाड़ में कुशालपुरा ) जिला पाली
चेन्नई में कोलाथुर फोन नम्बर +91-9600054032 
श्री सीरवी सेवा मंण्डल विल्लिवाकम चेन्नई

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